पीपल, कौआ और श्राद्ध !
श्राद्ध में कौए को खाना क्यों देते हैं? इसके पीछे का पर्यावरण सम्बंधित पक्ष।
क्या हमारे ऋषि मुनि अज्ञानी थे, जो कौवौ के लिए खीर बनाने को कहते थे? और कहते थे कि कव्वौ को खिलाएंगे तो हमारे पूर्वजों को मिल जाएगा? नहीं, हमारे ऋषि मुनि क्रांतिकारी विचारों के थे। यह है सही कारण। आपने किसी भी दिन पीपल और बड़ के पौधे लगाए हैं? या किसी को लगाते हुए देखा है? क्या पीपल या बड़ के बीज मिलते हैं?
इसका जवाब है ना.. नहीं....!

बड़ या पीपल की कलम जितनी चाहे उतनी रोपने की कोशिश करो परंतु नहीं लगेगी। कारण प्रकृति/कुदरत ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है। यह दोनों वृक्षों के टेटे (यानी की फल ) कव्वे खाते हैं और उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसीग होती है और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं। उसके पश्चात कौवे जहां-जहां बीट करते हैं वहां वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं।
पीपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो round the clock ऑक्सीजन O2 छोड़ता है और बड़ के औषधिय गुण अपरम्पार है। देखो, अगर यह दोनों वृक्षों को उगाना है तो बिना कौवे की मदद से संभव नहीं है इसलिए कव्वै को बचाना पड़ेगा..और यह होगा कैसे?

मादा कौआ भादों के महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है..तो इस नयी पीड़ी के उपयोगी पक्षी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है, इसलिए ऋषि मुनियों ने कव्वौ के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राघ्द के रूप मे पौष्टिक आहार की व्यवस्था कर दी। जिससे कि कौवौ की नई जनरेशन का पालन पोषण हो जायें.......
इसलिए श्राघ्द करना प्रकृति के रक्षण के लिए जरूरी है और घ्यान रखना जब भी बड़ और पीपल के पेड़ को देखो तो अपने पूर्वज तो याद आयेगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था इसीलिए यह दोनों उपयोगी पेड़ हम देख रहे हैं।
सनातन धर्म ने परंपराओं के रूप में कई लॉजिकल पक्ष छुपा दिये हैं जिसका आम जन को पता नहीं होता। सनातन धर्म को पता था कि किस बीमारी का इलाज क्या है, कौन सी चीज खाने लायक है कौन सी नही.. अथाह ज्ञान का भंडार है सनातन धर्म और इसके नियम।
हमें पूर्वजो के नियमो की गहराई को जानने की कोशिश करनी चाहिए।
संकलन: अनिल कुमार सागर, वरिष्ठ लेखक व स्वतंत्र पत्रकार