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क्या फेसबुक पैसों के लिए पोस्ट को ब्लाक कर रही है?

Updated: Mar 5, 2020

यह जमाना इंटरनेट और इंस्टेंट शेयरिंग का है। लोग कहते हैं कि इंटरनेट से सूचना की रफ्तार के साथ-साथ सूचना का लोकतंत्रीकरण भी हुआ है। यह काफी हद तक सही भी है, पर वर्तमान और भविष्य में सूचना का लोकतंत्रीकरण कितना रहेगा कह नहीं सकते।

पिछले दिनों हम विलियम डेलरिम्पल को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सुन रहे थे और जो बातें उन्होंने औपनिवेशीकरण (यानि कॉर्पोरेट काॅलोनाइजेशन) के बारे में कहीं वो वाकई सच होती प्रतीत हो रही हैं। विशेष रूप से डिजिटल कम्पनियों के बारे में।

दश-पन्द्रह साल पहले जब इंटरनेट और स्मार्टफोन विकासशील थे और इंटरनेट कम्पनीज़ छोटी थीं तब आशाओं से भरा समय था और डिजिटल कम्पनियां मात्र स्टार्ट-अप थीं और वैश्विक खुलेपन व जन सशक्तिकरण की पक्षधर थीं। अब ...जब, इंटरनेट इको सिस्टम विकसित व स्थापित हो गया है और डिजिटल स्टार्ट-अप गूगल, एप्पल, फेसबुक, आमाॅजन आदि बढ़े कारपोरेट बन चुकें हैं।

वैश्विक खुलेपन और जन सशक्तिकरण की भावना बहुत पीछे छूट चुकी है। अब जो नज़र आ रहा है वह है पैसे का जूनून और कारपोरेट घमंड।

ऐसा क्यों? क्योंकि यूज़रवेस बन चुका है लोगों ने डिजिटल व्यवस्था को अपने जीवन की दिनचर्या में शामिल कर लिया है।

यानि कि अफीम की लत लग चुकी है। यही वजह है कि फेसबुक एक ड्रग पैडलर की तरह मनमानी कर रहा है।

Facebook exploiting its users for money. Dangers of monopoly.
पैसों की भूखी फेसबुक मनमानी कर रही है।

और यह कोई मनगढंत कहानी नहीं है, हम ऐसा कैसे कह सकते? क्यों कि यह हमने स्वयं अनुभव किया है। दर-असल

हमारा फेसबुक पर एक पेज़ है। जब हमने शुरूआत की तब, सब सही चल रहा था इनफैक्ट फेसबुक एल्गोरिदम हमें पेज़ को कैसे और अच्छा बनाना है आदि के लिए विभिन्न फीचर सजैस्ट करती थी। लोग जुड़ने लगे.. हमारी पोस्ट और हमारी विभिन्न श्रेत्रीय हिन्दी वेबसाइट के लिंक भी हमने अपने फेसबुक पेज़ पर शेयर करने लगे, लोग पसन्द करने लगे और हमारे पाठक स्वतः भी शेयर करने लगे, जिससे पेज़ की लोकप्रियता स्वतःस्फूर्त ढंग से बढ़ने लगी। धीरे-धीरे हमने फेसबुक के सजैस्टिड सभी विवरण भर दिये और फीचर्स को एक्सपर्टली यूज़ करने लगे। अब फेसबुक ने अपना रंग दिखाना शुरू किया। जो भी हम पोस्ट करें उसे बूस्ट पोस्ट - बूस्ट पोस्ट कर.. हमें हर समय, हर जगह नोटिफाई करने लगा।

how facebook kept notifying us to boost post with money
फेसबुक द्वारा पोस्ट को बूस्ट करने के लिए हमारे फोन दिये गये तमाम नोटिफिकेशनन्स।
Facebook notification telling the price for boosting a post.
हमारे फेसबुक पेज पर, पोस्ट बूस्ट करने का दाम बताता हुआ एक नोटिफिकेशन।

हम बूस्ट पोस्ट करें तो फेसबुक को 400 - 500 रूपये पर पोस्ट पेमेंट करें। भई, क्यों करें बूस्ट? नहीं करना हमें।

हमनें फेसबुक के लाखों बार कहने पर पोस्ट बूस्ट नहीं की। इस बीच हमारे एक-दो अति उत्साही पाठक और मिलने वाले हमारी शेयर की हुयी पोस्ट को रिपोस्ट करने लगे। यही मौका, फेसबुक ने देखा और हमारी लिंक शेयरिंग वाली अधिकतर पोस्ट को ब्लाक करने लगी।

जो लिंक शेयरिंग वाली पोस्ट थीं, वो कोई बाहरी लिंक नहीं थे। जैसे कि आप इस लेख को चन्दौसी नाउ वेबसाइट पर पढ़ रहे हैं इसी लेख का लिंक हम अपने फेसबुक पेज़ पर शेयर करें तो फेसबुक इसे पोस्ट नहीं करने देता ... और ना.. ही करने देगा। आप हमारी बात पर न जायँ खुद ट्राई करें। क्या आप लिंक शेयर कर पाये? नहीं न..यही !

इस बात की सैकड़ों बार हमने फेसबुक को रिपोर्ट की लेकिन कोई सुनवाई नहीं। नीचे दिया हुआ यह स्क्रीनशॉट देखिए।

how facebook is blocking URLs
हमने एटा के खानपान के ऊपर एक पोस्ट लिखी थी और उसे कई बार अपने फेसबुक पेज पर शेयर करने की कोशिश की पर हर बार ब्लॉक कर दी हमारी पोस्ट। और 4 -5 हमने रिपोर्ट भी की यह रहा स्क्रीनशॉट।

अगर हमें पैसे ही देने हैं तो पोस्ट भी तुम्हीं बना दो। फिर हम काहे को माथा-पच्ची करें? लेकिन ऐसा नहीं है। फेसबुक पर जितना भी मैटिरियल यानि काॅन्टेन्ट है वह जनता का है यानि कि यूज़र जनरेटिड काॅन्टेन्ट। यह हम और आपके काॅन्टेन्ट के ऊपर ही कमा-खा रहे हैं फिर भी सारी रेगुलेशन और कायदे-कानून हमको ही ह्ररेस या प्रताड़ित करने के लिए हैं।

शुरू में हमने सोचा कि यह एक-आदा केस हो सकता है पर जब हमने पड़ताल की तो पाया कि ऐसा नहीं है, सैकड़ों हजारों यूज़र इसी तरह प्रताड़ित किये जा रहे हैं।

painful tales of people whose URL blocked on Facebook
फेसबुक की सपोर्ट कम्युनिटी के कुएस्शन-आंसर फोरम से ली गयीं हरैस्मेंट की कहानियाँ।

फेसबुक की सपोर्ट कम्युनिटी के कुएस्शन-आंसर फोरम"माई वेबसाइट यू आर एल अनफेयरली ब्लाॅकड" नाम के टाॅपिक के अन्तर्गत

गिलियन लिखते हैं: "मेरी वेबसाइट का यूआरएल फेसबुक ने नाजायज़ तौर से ब्लाॅक कर दिया है। यह वेबसाइट एक सीधी साधी मेरी आर्ट की पोर्टफोलियो है और सोशल मीडिया मेरे काम का हिस्सा है अब बताइए मैं अपने रोजगार के लिए कैसे कम्यूनिकेट करूँ? क्या फेसबुक का कोई बंदा इस समस्या को सुलझाने में मदद कर सकता है??"

इसके जबाब में फेसबुक हेल्प टीम की

एरिएल कहतीं हैं: "आप अपनी वेबसाइट का यूआरएल फेसबुक डिबग्गर पर चेक करके देख सकते हैं।"

इसके अलावा फेसबुक और कुछ मदद नहीं करती।

डिबग्गर भी कोई रामबाण औषधि नहीं है क्योंकि डिबग्गर कोड चेक करता है ना कि मानवीय विष्लेषण।

अनेक यूज़र कह रहे हैं कि उन्होंने डिबग्गर पर साइट चेक की और कोई एरर नहीं आ रहा है फिर भी फेसबुक ने वेबसाइट्स ब्लाॅक कर रखीं हैं। आप इन स्क्रीनशॉट में बाकी की व्यथा- कथायें पढ़ सकते हैं।

we checked our URLs with Facebook debugger... and there were no issues with our website URLs.
हमने फेसबुक डेवलपर डीबग्गर टूल से अपनी वेबसाइट चेक कीं और कोई इशू नहीं था।

यह हम और आपके काॅन्टेन्ट के ऊपर ही कमा-खा रहे हैं फिर भी सारी रेगुलेशन और कायदे-कानून हमको ही ह्ररेस या प्रताड़ित करने के लिए हैं। यही लक्षण हैं, जो बताते हैं कि एक समय स्टार्टअप रही फेसबुक... कारपोरेट बनने के बाद किस तरह सफलता के नशे और घमंड में चूर है। जैसे कि किसी ज़माने में ईस्ट इंडिया कम्पनी एक छोटी व्यापारी कम्पनी के तौर पर इंडिया आयी थी और यहाँ के बादशाह से सेवा करने का अवसर माँगा था उसी प्रकार फेसबुक भी

सेवा करने का ढोंग करते-करते हमीं पर रुतबा दिखाने लगी है। हमने शुरू में विलियम डेलरिम्पल की कॉर्पोरेट काॅलोनाइजेशन की थ्योरी का जिक्र किया था वह इसी संदर्भ में था। भारत में औपनिवेशीकरण इंग्लैंड ने खुद नहीं किया था या सेना भेजकर भारत को नहीं जीता था बल्कि एक व्यापारी कम्पनी ईस्ट इंडिया ने किया था, वो तो बाद में

इंग्लैंड की सरकार ने बहुत बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी से पावर अपने हाथ में ली.. जब ईस्ट इंडिया कम्पनी ने धन की लालसा में सब मानवीय मूल्यों को ताक पर रखकर जनता पर अत्याचारों की हद कर दी।

उस समय मल्टीनेशनल बनना कठिन था अतः औपनिवेशीकरण की गति स्लो थी पर डिजिटल कम्पनियों के लिए यह कोई समस्या नही है। आज चंद अमेरिकी कम्पनियां पूरे विश्व को चला रहीं... फेसबुक उनमें से एक है। डिजिटल औपनिवेशीकरण या कॉर्पोरेट काॅलोनाइजेशन अब वर्तमान समय की सच्चाई है। चाहे वो गूगल हो, एप्पल हो या फेसबुक हम स्वेक्षा से इनके दास बन चुके हैं (और कहते हैं: आय एम एप्पल फैन वाॅय) इनके बनाये नियम कायदे-कानून को हम शान से सर आंखों पर लेते हैं। जिस प्रकार ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राजाओं और राज्यों को अपने मे विलय कर लिया, उसी प्रकार फेसबुक ने व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम को खरीद कर अपने में मिला लिया।

यानि सोशल मीडिया के ऊपर एकाधिकार सा कर लिया है।

यही वजह है कि फेसबुक अपनी मनमानी करती है।

इसमें काफी कुछ दोष गूगल का भी है जिसने ऑरकुट और गूगल प्लस जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को मर जाने दिया फेसबुक वास्तव में ऑरकुट को कापी करके ही बना प्रतीत होता है। खैर,जरूरत अब यह है कि इस वैक्यूम ऑफ कॉम्पिटिशन को कैसे खत्म किया जाये? और कौन सक्षम है यह करने में... शायद ट्विटर। ट्विटर के मालिकों को सोशल मीडिया के इस श्रेत्र भी कुछ करना चाहिए।

Facebook pushing us to it's another app workplace.
साथ ही फेसबुक अपने दूसरे ऐप पर जाने के लिए पुश नोटिफिकेशनन्स देता है। इस स्क्रीनशॉट में हमें वर्कप्लेस पर जाने को कह रहा है।

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